पादप प्रजनन के मूलभूत सिद्धांत का प्रकाशन मूलरूप से भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों में अध्ययनरत स्नातक स्तर के विद्यार्थियों के लिए किया गया है। गत डीन कमेटी की अनुशंसाओं के अनुरूप इसका विषय एवं पाठ्यक्रम रूपान्तरित किया गया है। पुस्तक में सभी विषय पादप प्रजनन की परिभाषा से लेकर पादप प्रजनन की उपलब्धियों तक क्रमबद्ध तरीके से लिखे गये हैं। प्रारम्भिक अध्यायों में अनुवांशिकी के आधारभूत सिद्धांत और पादप प्रजनन में उनके उपयोग की बात साधारण भाषा में समझायी गयी है।
स्वपरागित से लेकर पूर्णतया परपरागित फसलों की प्रजनन की विधियाँ उदाहरणों के साथ समझायी गयी हैं। संकर ओज प्रजनन, उत्परिवर्तन प्रजनन, गुणज प्रजनन, रोग एवं कीटरोधिता के लिए प्रजनन तथा पादप प्रजनन की अभिनव विधियों का विस्तार से वर्णन किया गया है। अंत में पादप प्रजनन के अपने देश में संगठन और उनकी उपलब्धियों तथा प्रजाति विमोचन और उनके बीज उत्पादन का सचित्र वर्णन किया गया है। पुस्तक की भाषा ऐसी रखी गयी है कि साधारण से साधारण विद्यार्थी भी इसे आसानी से समझ सके । वैज्ञानिक शब्दों की हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं के वर्णक्रम के अनुसार सारणी भी दी गयी है। कुल मिलाकर यह अपने तरह की अनूठी पुस्तक है जो आधुनिकतम उदाहरणों के साथ पादप प्रजनन जैसे कठिन विषय को सरल भाषा में आपके सामने प्रस्तुत कर रही है । आशा है कि शिक्षक एवं शिक्षार्थी इसका पूर्ण लाभ उठायेंगे ।
राम चेत चौधरी गत 45 वर्षों के शिक्षा एवं अनुसंधान के अनुभवों से परिपूर्ण, एक जाने- माने लेखक हैं। इनके 300 से अधिक अनुसंधान पत्र, लोकप्रिय लेख, पुस्तिकाएं और पुस्तक प्रकाशित हो चुके हैं। इनके प्रकाशन विश्व बैंक, विश्व खाद्य संगठन, अन्तर्राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्रों तथा अन्य प्रतिष्ठित स्रोतों से प्रकाशित हो चुके हैं। 1969-1979 में गोविन्द बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर और 1979-1984 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय विश्वविद्यालय पूसा, बिहार में प्राध्यापक के रूप में पादप प्रजनन की विभिन्न विधाओं के विद्यार्थियों को पढ़ा चुके हैं। अध्यापन के साथ-साथ इनका अनुसंधान का विगत 45 वर्षों का अनुभव रहा है । यह अनुभव विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, फिलीपीन्स, विश्व खाद्य संगठन और अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं में इन्होंने अर्जित किया है। वर्तमान में विश्व खाद्य संगठन से सेवा निवृत्त होकर गोरखपुर में पीआरडीएफ संस्थान का संचालन करते हैं। सेवानिवृत्त होने के बाद भी ये विभिन्न फसलों का प्रजनन कर रहें हैं। कालानमक धान की इन्होंने गत वर्षों में तीन प्रजातियाँ विकसित करके इन्हें भारत सरकार से विमोचित करवाया है। इन्हीं अनुभवों के आधार पर वर्तमान पुस्तक लिखी गयी है।